Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 139( Eye for An Eye-8)

दर्द से चिल्लाते हुए मैने अपनी गर्दन इधर -उधर की... ताकि किसी तरह  मैं इस बुरे सपने से बाहर आ सकूँ और तभिच मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ ने पहली बार विनोद  के सामने अपनी बत्ती जलाई और मैने अपना सर पास की दीवार मे ज़ोर से दे मारा.....
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इधर मैने अपना सर दीवार पर मारा और उधर दूसरी तरफ मेरी नींद डेस्क मे मेरे सर टकराने से खुली...

"आहह..."अपने सर को सहलाते हुए मैने क्लास की तरफ देखा .

"क्या हुआ अरमान...."विभा अपनी हँसी दबाते हुए बोली"अपना सर डेस्क पर क्यूँ पटक रहे हो..."

"अभी-अभी मैने सपने मे भूत देखा और सपने से बाहर आने के लिए अपना सर सपने मे  ज़ोर से दीवार पर दे मारा..."मैने सच कहा... क्यूंकि अकसर लोगो को सच, सच नहीं लगता और झूठ.. झूठ नहीं लगता...

"अच्छा...भूत ने और क्या-क्या किया..."

"बस इतना ही किया, आगे मैने कुछ  करने ही नही दिया उसे..."
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विभा ने और भी तरह-तरह के सवाल पूछे और उसके हर सवाल पर मैने एक दम सही जवाब दिया ,लेकिन वो और पूरी क्लास सिर्फ हंस रही थी...सबको लग रहा था कि मैं कॉमेडी कर रहा है...

"कमाल है यार, साला सच बोलो...तब भी किसी को यकीन नही होता "
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"रुक...रुक...रुक...एक इंपॉर्टेंट कॉल है..."वरुण बोला और अपना मोबाइल लेकर वहाँ से उठ गया...

वरुण के जाने के बाद अरुण अपनी आँखे बड़ी किए हुए और मुँह फाडे हुए मुझे देख रहा था....

"तुझे क्या हुआ..."मैने अरुण को इशारा किया...

"सच मे वो लौंडा तेरे सपने मे आता है या तू मिर्च मसाले लगाकर कहानी को इंटरेस्टिंग बनाने की कोशिश कर रहा है...??"

"कहानी को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए मेरे पास और भी कई फ़ॉर्मूले है बे लोलु ...क्या तुझे यकीन नही हो रहा "अरुण का कॉलर पकड़ते हुए मैं बोला...

"मुझे याद आ गया और ये यकीन भी हो गया कि तू सच बोलिंग ...क्यूंकी जब मैं और सौरभ, bhu से मिलने के बाद  कॉलेज पहुँचे थे तो किसी ने मुझसे कहा था कि तू एक दिन चलती क्लास के बीच मे अपना सर फोड़ रहा था.... तो ये वजह थी, मुझे लगा की शायद.. सिर मे चोट लगने का असर होगा..."

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"ओके..ओके... मैं कर दूँगा...काम हो जाएगा..."फोन पर किसी से बात करते हुए वरुण वापस मेरे सामने बैठा"वो सब तो सही है लेकिन एक बात समझ मे नही आई कि ,गौतम को तो तूने सिर पर रोड मारी थी,फिर वो लंगड़ा कर कैसे चल रहा था..."

"अपना चेहरा ज़रा करीब लाना..."मैने बड़े प्यार से वरुण को कहा

"क्यूँ..."

"चुम्मा लूँगा.... अबे बकलोल आदमी ,उस वक़्त ,जब हॉस्टल  मे मेरी गौतम से लड़ाई हुई थी तो, वहाँ हमलोग लुडो और साँप-सीढ़ी का गेम नही खेल रहे थे... लड़ाई कर रहे थे और कौन कब किसकी बजा के निकल जाए ,इसकी हवा तक नही लगती... किसी ने पेल दिया होगा गौतम के पैर मे... सर मे भी चोट लगी थी,लेकिन अब सर के बल तो वो चाल नहीं रहा था की सर से लंगड़ाए..."

"ह्म....ये हो सकता है.."

"ये हो सकता है नही.... यही हुआ है... मुझपर शक मरना मतलब स्वयं भगवान पर शक करना "

" फिर तूने दीपिका को कैसे ठोका , मेरा मतलब.... उससे अपना बदला कैसे लिया...??? और वो लड़का कौन था जिसने पत्थर के उपर से कूदकर तेरी ठुकाई स्टार्ट की थी..."

"दीपिका को मैने बहुत अच्छे से ठोका और वो लड़का वही था,जिसने फर्स्ट एअर मे मेरी रैगिंग ली थी..."

"क्या "चौकते हुए वरुण ने अपने सर पर अपना हाथ फिराया"वैसे, मैने गेस किया था कि वो लड़का वरुण होगा...."

"उस रात अंधेरे मे उस लौन्डे को देखकर मुझे उसकी शक्ल  कुछ  जानी-पहचानी सी लगी थी...और मैने भी यही मान लिया था कि वो लड़का यक़ीनन वरुण ही है...लेकिन मेरा ये कन्फ्यूषन अमर सर ने दूर किया ...जब वो हॉस्पिटल मे मुझसे मिलने आए थे तो उन्होने मुझे बताया था कि उन गुन्डो मे वो लड़का भी शामिल था जिसने फर्स्ट एअर मे मेरी रैगिंग  ली थी.  मैने दिमाग़ पर जोर डाला और तब मुझे समझ आया की फर्स्ट ईयर मे मेरी रैगिंग लेने के दौरान मुझपर सबसे पहले अटैक  करने वाला वरुण नही था "

"फिर एक सवाल यहाँ ये भी पैदा होता है कि अमर को ये इन्फर्मेशन किसने दी..."बोलते-बोलते वरुण अचानक चुप हो गया और थोड़ी देर बाद उसने डरते हुए कहा"दिल पे मत लेना, भाई..... लेकिन मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि तेरी पिटाई मे अमर का भी हाथ था..."
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वरुण के ऐसा कहने पर मैं मुस्कुराए बिना नही रह सका...

"आक्च्युयली यहाँ मैटर  थोड़ा और कन्फ्यूज़ करने वाला है.. मेरी कहानी उतनी सीधी नहीं है.. जितनी लग रही है और रही बात अमर को इनफार्मेशन किसने दी तो.... .अमर सर जब मुझसे मिलने हॉस्पिटल मे मिलने आए थे तो उन्होंने मुझसे कहा था की.. सिदार  को सब मालूम चाल गया है ...जैसे कि नौशाद ने तेरा कॉल डिसकनेक्ट कर दिया था, दीपिका ने तुझे फसाया था और मेरी रैगिंग  लेने वाला सीनियर गुन्डो के उस ग्रूप मे शामिल था..."

"एक मिनट ...सर थोड़ा घूम रहा और मेरी फट भी रही है..."अरुण की तरफ इशारा करते हुए वरुण ने थोड़ी दूर रखी टेबल पर से पानी की बोतल लाने के लिए कहा....

"दिल पे मत ले, मुँह मे ले..."

"सिदार  कैसे मरा,एक बार फिर से बताएगा क्या ? प्लीज़ "

वरुण के इस सवाल ने मुझे कुछ  देर के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया...मुझे समझ नही आ रहा था कि कहाँ से शुरुआत करूँ... क्यूंकि मै खुद कंफ्यूज हो जाता हूँ, जब भी सिदार के मौत कि बात आती है तो... पर जवाब तो कुछ ना कुछ देना था.. श्री अरमान की रेपुटेशन का जो सवाल था.. इसलिए मैने कहना शुरू किया....

"तुझे क्या लगता है कि मैने सिदार  के मौत के बारे मे अपनी तरफ से खोज-बीन नही की... जो लोगो ने बताया उसी को सच मान लिया...?? नहीं.... वरुण ,वो 23 साल का लड़का जो उस दिन मरा था, वो मेरे लिए कोई आम नही था,जिसके बारे मे दुनिया कुछ  भी बोले और मैं बिना किसी सबूत के सब कुछ  मानता चला जाउ.. मैने बहुत खोज बीन की ,बहुत हाथ-पैर चलाए... एनटीपीसी मे उसके साथ काम करने वाले इंजीनियरों से भी पुछा.... यहाँ तक कि मैने पुलिस स्टेशन के भी कई चक्कर लगाए,लेकिन रिज़ल्ट पहले जैसा ही था...सारी कड़िया इसी बात की तरफ इशारा कर रही थी कि सिदार  की मौत एक हादसा था ना कि मर्डर....."

"ओके...जब तूने सब कुछ  पता किया था तब मैं कुछ  नही बोल सकता,लेकिन फिर भी मुझे ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है कि सिदार  के साथ कुछ  ऐसा हुआ होगा जो किसी को नही मालूम..."

"शुरू-शुरू मे मुझे भी यही लगता था.. मैं घंटो अकेला हॉस्टल के बाहर रखी उस जंग लगी बेंच पर बैठकर  सिगरेट पीते हुए अकेले इस बारे मे सोचा करता ,लेकिन इससे कुछ  भी हासिल नही हुआ...क्यूंकी सारी कड़िया हर बार घूम -घूम कर इसी बात पर अपनी मुहर लगा देती थी कि सिदार  के साथ हादसा हुआ था ना कि मर्डर....."मैने कहा और अरुण को आँखों से ही इशारा किया.. कि वो बीच मे ना बोले...

"ठीक है ,चल छोड़...फिलहाल तो तू ये बता कि दीपिका से तूने अपना बदला कैसे लिया...  मेरे ख़याल से तूने उसे लिटा-लिटा कर,रगड़-रगड़ कर...आगे-पीछे ,उपर-नीचे ... दाये -बायें.. जितने भी छेद उसके शरीर मे रहे होंगे.. सबमे घुसा दिया होगा.... मै बहुत एक्साईटेड  हूँ उस हॉट मोमेंट को सुनने के लिए "

"उसके लिए फिर से अतीत के समुंदर मे डुबकी मारनी पड़ेगी..."

"हां तो मार ना डुबकी..3 घंटे है मेरे पास.. अभी "घड़ी मे टाइम देखते हुए वरुण बोला...
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सौरभ और अरुण को वापस आने मे तीन से चार दिन का समय लग गया और ये तीन से चार दिन मेरे लिए बहुत बोरिंग साबित हुए... साला बिल्कुल मज़ा ही नही आ रहा था इन दोनो के बिना. जबकि कॉलेज वही था, प्रोफेसर भी वही थे, लड़किया भी वही की वही.. वही थी... फिर भी एकदम से मन नहीं लगता था कॉलेज मे... तब समझ आया की ये लोग जो कहते है की...  I Miss my college days, कश की वो दिन फिर आ जाये... वो दरअसल अपने दोस्तों को मिस कार्टर है और उनके साथ होने वाली बकचोदी को... यही चीजे  ईट और सीमेंट की उस बेजान सी बिल्डिंग मे जान फूक देती है. खैर, उन दिनों कॉलेज मे तो फिर भी सुलभ के रहने के कारण थोड़ा बहुत मन लग जाता था लेकिन हॉस्टल  मे आने के बाद साला पूरा टाइम मुझे काटने को दौड़ता....

जब ये दोनो भू से मिलकर वापस आए तो जान मे जान आई .सौरभ और अरुण के वापस आने के बाद फिर से अपनी वही पुरानी ज़िंदगी शुरू हो गयी. हमलोग दिन भर कॉलेज मे टीचर्स को परेशान करते और कॉलेज से आने के बाद किसी जूनियर को पकड़ कर उससे सिगरेट मँगवाते और फ्री मे पीते , हमारे इस काम मे हमारा जूनियर राजश्री पांडे हमारी बहुत हेल्प करता था, वो खुद हमे आकर उन लड़को के नाम बता जाता जिनके पास बहुत पैसे थे और वो थोड़े फट्टू टाइप के थे...बदले मे राजश्री पांडे को हमलोग कुछ  सिगरेट पैकेट  से निकाल कर दे देते थे....

हमारे दिन ऐसे ही बीत रहे थे कि एक दिन कॉलेज जाते वक़्त कॉलेज के बाहर मुझे दीपिका मैम  दिखी जो अपनी कार से उतर रही थी... कार से...?? कार से...??  पर उसके पास तो कार थी ही नहीं. तब किसी ने बताया की दीपिका मैम  ने हाल ही मे एक नयी कार खरीदी है, जिसके बाद मुझे ये समझने मे बिल्कुल भी देर नही लगी की दीपिका के पास ये कार गौतम के बाप की मेहरबानी से आई है मतलब कि ये कार दीपिका मैम  के उस काम का मेहनताना था जिसके बदौलत मैं 3 महीने तक हॉस्पिटल मे अड्मिट था... Wow... तब तो गौतम के बाप के साथ उसके बिस्तर पर लेटी भी होगी ये... साली, छिनार नहीं तो..

दीपिका मैम को उसी समय देखते ही मेरे शरीर का आधा खून जल गया, लेकिन फिर मैने जबरदस्ती... पत्थर मे दिल रख कर अपने होंठो पर एक मुस्कान बिखेरते हुए उसकी तरफ बढ़ा....

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